सावन के महीने मे भगवान शिव की पूजा

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By headlines247livenews.com

सावन के महीने मे भगवान शिव की पूजा

ओम नमः शिवाय।

सावन के महीने मे भगवान शिव की पूजा का महत्व जानने से पहले भगवान को उनके मंत्रों द्वारा स्मरण करना जरूरी है –

“कर्पूरगौरं करुणावतारं आराम संसार सारं भुजगेन्द्र हारम सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भवं भवानी सहितं नमामि”

अर्थ :-

कर्पूरगौरं – कर्पूर के समान गौर वर्ण वाले।

करुणावतारं – करुणा (दया) के जो साक्षात् अवतार हैं।

संसारसारं – समस्त सृष्टि के जो सार हैं।

भुजगेंद्रहारम् – जो सांप (भुजंग) को हार के रूप में धारण करते हैं।

सदा वसतं हृदयाविन्दे भवंभावनी सहितं नमामि – भगवान शिव माता पार्वती(भवानी) सहित मेरे ह्रदय में सदैव निवास करें और उन्हें मेरा नमन है।

सावन के महीने मे भगवान शिव की पूजा

भगवान शिव की पूजा सावन महीने में ही क्यों की जाती है ?

पौराणिक कथा के अनुसार देवताओं और राक्षसों के द्वारा समुद्र मंथन किया जाता है।

जिसमे कालकूट विष निकलता है और भगवान शिव उस विष को अपने कंठ में धारण कर लेते हैं जिसके कारण भगवान शिव का ताप अत्यधिक बढ़ जाता है।

तब इंद्रदेव भगवान शिव पर जल की वर्षा करते हैं और भगवान शिव का ताप ठंडा हो जाता है।

यह सावन का ही महीना होता है जब इंद्रदेव भगवान शिव पर जल वर्षा करते हैं। भगवान शिव देवराज इंद्र पर अति प्रसन्न होते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं।

फिर भगवान शिव देवराज इंद्र से कहते हैं कि तुमने इस सावन के महीने में मुझ पर जल वर्षा कर मुझे शीतलता प्रदान की है, सो आज से यह पावन महीना मेरे लिए अति प्रिय हो गया है। अतः जो भी भक्त इस पावन महीने में मुझे जल अर्पित करेगा उस पर मेरी अति विशेष कृपा रहेगी।

तभी से सावन के महीने में भगवान शिव की विशेष पूजा की जाती है।

कहा जाता है कि सावन के महीने में भगवान शिव अपनी पत्नी माता पार्वती के साथ पृथ्वी पर आते हैं और इस समय उनके भक्तों को भी उनकी पूजा करने का अवसर मिलता है।

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सावन के महीने मे भगवान शिव की पूजा

शिव महापुराण में बताया गया है कि माता सती के पिता प्रजापति दक्ष ने अपनी राजधानी कनखल में एक विराट यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उन्होंने अपने जमाता शिव और पुत्री सती को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं दिया।

लेकिन फिर भी माता सती भगवान शिव से अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में शामिल होने की जिद करती है और शिवजी के काफी समझाने के बाद भी सती अपने पिता के उस यज्ञ में बिना बुलाए ही चली जाती है।

जब सती यज्ञ स्थल में जाती हैं तो दक्ष प्रजापति शिव जी की घोर निंदा करते हैं और अपमान भरे शब्द कहते हैं ।

इस पर माता सती को अत्यंत दुख होता है और हर जन्म में भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने की इच्छा रखते हुए अपने आपको यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिया और अपने प्राण त्याग दिए।

इसके बाद शिव गण यज्ञ को तहस नहस कर देते हैं और भगवान शिव को प्रजापति दक्ष पर अत्यंत क्रोध आता है और वे त्रिशूल से उसका धड़ अलग कर देते हैं।

फिर कुछ समय पश्चात पर्वतराज हिमालय और रानी मैना के घर माता सती का दूसरा जन्म पार्वती के रूप में होता है।

पार्वती भगवान शिव की बहुत भक्त थीं और जब पार्वती युवा हुई तो उन्होंने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की। कई वर्षों की घोर तपस्या करने के बाद सावन के महीने में भगवान शिव पार्वती पर प्रसन्न होते हैं और उन्हें दर्शन देते हैं।

पार्वती की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने पार्वती से वरदान मांगने के लिए कहा।

इस पर पार्वती ने भगवान शिव से कहा की “है नाथ मैंने आप को पति रूप में पाने के लिए ही तपस्या की है।अगर आप मेरी तपस्या से प्रसन्न हैं और मुझे वरदान देना चाहते हैं तो मुझे वरदान दें कि मैं जन्म जन्मान्तर के लिए आपकी पत्नी बनूँ और पति के रूप में मैं आप की सेवा करती रहूं।“

इस पर भगवान शिव पार्वती के वर मांगने पर अति प्रसन्न होते हैं और पार्वती को मनवांछित वरदान देते हैं और अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करते हैं।

फिर भगवान शिव पार्वती से कहते हैं कि “जिस प्रकार तुमने तपस्या करके सावन के महीने में मुझे प्राप्त किया, उसी प्रकार अगर कोई अविवाहित कन्या सावन के महीने में जल से अभिषेक करके चंदन और कुमकुम का लेपन लगाकर मेरा पूजन करेगी तो उसको भी मनचाहे वर की प्राप्ति होगी।“

तभी से अविवाहित युवतीया सावन के महीने में उपवास रखकर शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाकर चंदन और कुमकुम का लेप लगाकर भगवान शिव की पूजा करती है, जिससे भगवान शिव अतिप्रसन्न होते हैं और उन्हें मनचाहा वर देकर उनकी मनोकामना पूरी करते हैं।

पारिवारिक जीवन में सावन मास का महत्व ——–

पारिवारिक जीवन में सावन मास का महत्व

वैवाहिक महिलाएं और पुरुष अपने दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाने के लिए, संतान प्राप्ति के लिए, घर में आने वाले कष्ट, रोग इत्यादि को दूर करने के लिए, व्यापार व नौकरी में आने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए और विद्यार्थी अपनी अच्छी शिक्षा प्राप्ति के लिए सावन के महीने में उपवास रखकर भगवान शिव को जल अर्पित करके पूजा अर्चना करते हैं जिससे कि भगवान शिव और माता पार्वती बहुत प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करके उनके जीवन को सुखमय बना देते हैं।

तो यह थी सावन के पावन महीने में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा के संबंध में एक छोटी सी जानकारी। हम आशा करते हैं कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी।

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