मोहनलाल भास्कर: एक भारतीय जासूस की अद्भुत कहानी

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By headlines247livenews.com

मोहनलाल भास्कर: एक भारतीय जासूस की अद्भुत कहानी

बात है साल 1965 के बाद की जब भगत सिंह की समाधि स्थल के पास एक शख्स देशभक्ति की कविता पढ़ रहा था। कविता खत्म होते ही सामने खड़ी भीड़ में से एक अफसर सा दिखने वाला शख्स उनके पास आता है और कहता है कि देश के लिए कविताएँ पढ़ना आसान है, पर मरना मुश्किल ।

कविता पढ़ रहा शख्स हाजिर जवाब था इसलिए उसने बिना देर किए जवाब देते हुए कहा कि साहब बॉर्डर पर अगर गोली चले तो बुला लेना।आप से चार कदम आगे ही चलूँगा और अगर भागा तो गोली मार देना। कविता पढ़ रहा शख्स बाद में भारत का एक बेहद काबिल जासूस बना लेकिन साथी की गद्दारी की वजह से वह पाकिस्तान में पकड़ा गया।

आज हम बात करेंगे भारतीय एजेंट मोहन लाल भास्कर की।

बचपन से भारतीय एजेंट तक का सफर

मोहन लाल भास्कर का बचपन कुछ खास अच्छा नहीं था क्योंकि घर की माली हालत ठीक नहीं थी।

लेकिन उनके पढ़ाई लिखाई के शौक ने उन्हें पहले शिक्षक और बाद में उप प्रधानचार्य बना दिया। इसके अलावा उन्होंने बतौर संपादक उप संपादक काम किया और बाद में जालंधर के रेडियो स्टेशन में भी अपनी सेवाएं दी। इसके बाद 1965 भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद जब वे भगत सिंह की समाधि के पास कविता पढ़ रहे होते हैं तो उनकी मुलाकात एक अफसर जैसे दिखने वाले शख्स से होती है। जिसके बाद वह शख्स उन्हें दिल्ली लाकर उनकी मुलाकात इन्टेलिजेन्स ब्यूरो के कुछ बड़े अधिकारियों से कराता है।

मोहनलाल भास्कर
मोहनलाल भास्कर

क्योंकि तब तक रॉ का गठन नहीं हुआ था इसलिए आईबी और दूसरी एजेंसियां ही भारत की बाहरी सुरक्षा संभालती थी। मोहन लाल की ट्रेनिंग कराई जाती है, जिसमें उनका खतना तक करवा दिया जाता है और फिर उन्हें पाकिस्तान भेज दिया जाता है, जहाँ उन्हें जिम्मेदारी दी जाती है कि पाकिस्तान के नुक्लेअर प्रोग्राम से जुड़ी खुफिया जानकारी और अपडेट इकट्टा करे और भारत तक ये सभी सूचनाएं पहुंचाते रहे।

मोहनलाल के साथ धोखा

इस दौरान उनकी मदद कर रहे थे उनके एक साथी- अमरीक सिंह। समय समय पर पाकिस्तान में चल रहे नुक्लेअर प्रोग्राम से जुड़ी अहम जानकारियां अलग अलग माध्यमों से भारत तक पहुचने लगे , लेकिन ये सब ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाया क्योंकि उनका साथी अमरीक सिंह उनके साथ गद्दारी कर देता है, जिसकी वजह से उनका यह सीक्रेट कॉम्प्रोमाइज हो जाता है। लिहाजा पाकिस्तानी सेना उन्हें पकड़ लेती है और उन्हें वहाँ की कोट लखपत जेल में बंद कर दिया जाता है। अमरीक सिंह वास्तव में डबल एजेंट था । पहले वह भारत के लिए काम करता था पर बाद में पाकिस्तान के लिए काम करने लगा जिसके चलते मोहनलाल भास्कर फंस गए।

पाकिस्तानी जेल मे यातनाऐं

मोहन लाल भास्कर की आत्मकथा “एन इंडियन स्पाइ इन पाकिस्तान” के मुताबिक इसी जेल में उनकी मुलाकात पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो से होती है। लेकिन बाद में मोहन लाल का ट्रांसफर मियांवाली जेल में कर दिया जाता है जहाँ उन्हें तरह तरह की यातनाएं देकर भारत के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश की जाती है। लेकिन मोहन लाल हर बार कहानियाँ बनाकर राज़ को राज़ रखने में सफल रहते। वह बहुत बहादुर थे और उन्होंने कभी भी यातना के आगे घुटने नहीं टेके। पाकिस्तानी एजेंसी ने उन्हे भी डबल एजेंट बनाना चाहा पर मोहनलाल नहीं माने ।

1971 भारत-पाक युद्ध

साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर बड़ी लड़ाई होती है , लेकिन भारत बहुत होशियार और तैयार था, और भारत ने लड़ाई जीत ली क्योंकि भारत के पास पाकिस्तान से अच्छी जानकारी थी और सेना तैयार थी। पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने हार मान ली और आत्मसमर्पण कर दिया। इस जीत में मोहनलाल भास्कर द्वारा दिए गए जानकारी ने भी अहम भूमिका अदा की ।

शिमला समझौता और मोहनलाल की घर वापसी

मोहनलाल द्वारा लिखी गई किताब
मोहनलाल द्वारा लिखी गई किताब

इसके बाद 1972 में शिमला समझौता होता है जिसमें दोनों ही देश एक दूसरे के युद्धबंदियों को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं । भारत तमाम सैनिकों के साथ मोहन लाल भास्कर को भी इस समझौते में छुड़वाने में कामयाब रहता है, जिसके बाद वे भारत वापस आते हैं और अपने अनुभवों को साझा करने के लिए एक किताब भी लिखते हैं जिसका शीर्षक है – “एन इंडियन स्पाइ इन पाकिस्तान”।

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